कामिनी भाग 16
भले उसने अपने सुंदर यौवन की आहुति दे दी है पर उसे इस बात की खुशी भी है कि वह अपनी योजना,अपने षड्यंत्र में सफल हुई है,मुनिवर उसके पास ही सोया है, क्योंकि अभी भी उन पर से उस माधदक वस्तु का प्रभाव कम नहीं हुआ है, कामिनी ने सामन मुनि का ब्रह्मचर्य, रात्रि ने मानकराव का ब्रह्मचर्य नष्ट किया और उसकी सभी सखियों ने उन सभी, शिष्यों का ब्रह्मचर्य नष्ट किया, जब कुछ देर बाद
सामन मुनि को होश आया तो उन्होंने अपने आप को निर्वस्त्र पाया और अपने पास कामिनी को निर्वस्त्र अवस्था में देखा तो वह क्रोधित हो उठे, उन्होंने अपनी धोती लपेटी और कामिनी पर उसके वस्त्र फेंके और खड़े होकर देखा
उनके सभी शिष्य उन सुंदर युवतियों के साथ नग्न अवस्था में पड़े थे, यह देखकर सामान मुनि और क्रोधित हो उठे, फिर उन्होंने अपनी आंखें बंद कर, अपनी ध्यान शक्ति से अपने सीधे हाथ में कमंडल से पानी लिया और मंत्र पढ़कर, अपने शिष्यों पर फेंका, जिसके प्रभाव से उसके सभी शिष्य होश में आए और कपड़े पहनने लगे
फिर उन्होंने नीचे पड़ी कामिनी की और गुस्से से देखा और उस पर जल छिड़का, उस जल के प्रभाव से कामिनी के शरीर में ऊर्जा जागृत हुई और उसने अपने कपड़े पहने, तब सामन मुनि ने कहा
"व्यभिचारिणी,,,कुल्टा, पापिणी, तूने छल से मेरा और मेरे सभी शिष्यों के ब्रह्मचर्य को नष्ट किया है, तेरा अपराध बहुत जघन्य है, इसीलिए तू और यह तेरी सभी सखियां, दंड की अधिकारी है"!
"हा,,,,हा,,,,हा,,,,हा,,,,ब्रह्मज्ञानी के मुख से गाली सुनकर मुझे कोई आश्चर्य नहीं हो रहा है, यह भी एक बहुत बड़ा आश्चर्य है, मुनिवर,,,,मैंने कहा था कि मेरे यौवन की शक्ति स्वर्ग के देवता और ब्रह्म ज्ञानी के ध्यान को भंग कर सकता है, अब पता चली,,,सुंदर स्त्री के योवन की शक्ति,,,अरे,,,मैंने तो तुम्हें भगवान मानकर, तुमसे अपने प्रेम की भिक्षा मांगी थी पर तुमने मेरा और मेरे प्रेम का अपमान किया, इसीलिए मैंने, तुमसे अपना प्रतिशोध लिया है, स्त्री केवल प्रेम करना ही नहीं जानती है, वह शेरनी बनकर अपने अपमान का प्रतिशोध लेना भी जानती है, अब आप संसार को क्या मुंह दिखाओगे, ब्रह्मज्ञानी, सामन मुनिवर,,,,आप तो एक सुंदर स्त्री के यौवन से पराजित हो गए, अपने पाखंडी संन्यास की जग हसाई के लिए तैयार हो जाओ"! कामिनी ने हंसते हुए कहा
"छल,,,,छल होता है, मूर्ख स्त्री, मेरे शब्दों में आज भी इतना सामर्थ्य है, जो इस संसार में प्रलय ला सकता है, मैं सामान मुनि,,,अपने पूरे होशो हवास में तुझे श्राप देता हूं, कि जिस प्रेम को पाने के लिए, तूने और तेरी सभी सखियों ने मेरे और मेरे सभी शिष्यों के साथ, जो छल किया है, तुम कभी उस प्रेम को नहीं पाओगी, तुम सभी आज सूर्यास्त होते ही पिशाचिनीया बन जाओगी और विवश होकर, अपने ही प्रेमी का हृदय निकाल कर खाओगी और तुम्हारी कोख से भेड़िए जन्म लेंगे"!
यह श्राप देकर, सामन मुनि अपना कमंडल उठाकर चले और उनके पीछे उनके सभी शिष्य भी चल पड़े, जब सामन मुनि का क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने अस्त होते सूर्य को देखा और अपने शिष्यों से कहा
"मुझसे क्रोध में अनर्थ हो गया है, जितनी जल्दी हो सके, इस नगर से भाग जाओ, सूर्यास्त होने वाला है"!
सामन की बात सुनकर, सभी शिष्य चारों दिशाओं में भागने लगे पर सामान मुनि वही रूके, उन्होंने तंत्र क्रिया से कानपुर के चारों और एक नदी का निर्माण किया और वहां अपनी शक्ति से एक अनोखे वृक्ष का निर्माण किया, जिसका रंग सफेद था
फिर उस पेड़ के पत्ते पर आकृति बनाई, जिसमें उन पिशाचिनियों से मुक्ति पाने का संकेत था, सूर्यास्त हो चुका था पर ना तो सामान मुनि और ना उनका कोई शिष्य, कामपुर नगर के बाहर निकल पाया था, सूर्यास्त होते ही कमीनी, रात्रि और उसकी सभी सखियां, पिशाचिनीया बन गई, उनके मुख में शेरनी जैसे नुकीले दांत उत्पन्न हो गए और लंबे-लंबे नाखून निकल आए, उनकी पूरी प्रकृति पिशाचीनियों की भांति हो चुकी थी, जिसने, जिसके साथ प्रेमपूर्वक समागम किया था, वह पिशाचिनी उस शिष्य की छाती चीर कर, उसका हृदय निकाल कर खाने लगी, रात्रि और कमीनी ने मानक राव का हृदय निकाल कर खाया, उन पिशाचीनियों ने एक-एक कर,सभी शिष्यों की हत्या कर,उनका हृदय निकाल कर खाया, वह सभी शिष्य,चारों दिशाओं में भागते-भागते नदी के किनारे पहुंचे थे, उन पिशाचीनियों ने नदी के किनारे या नदी के अंदर, उन सभी शिष्यो की हत्या की, इसलिए उस नदी का जल लाल हो गया था, फिर अंत में कामिनी अपना विकराल रूप लेकर, सामन मुनि के सामने आई, उसके सिंह जैसे नुकीले दांत और घने खुले बाल, लंबे-लंबे नुकीले नाखून, बड़े भयानक प्रतीत हो रहे थे, तब कामीनी ने अपनी भयभीत करने वाली आवाज में कहां
"तुम्हारे सभी शिष्यों के हृदय, मेरी सखियो के पेट में धड़क रहे हैं, मैंने कुछ घंटे पहले, तुम्हारे साथ प्रेम पूर्वक, संभोग किया था, इसीलिए तुम भी मेरे प्रेमी हो, अब मैं तुम्हारा ह्रदय निकाल कर खाना चाहती हूं"! कामिनी ने भयभीत करने वाली आवाज में कहा
"यह शरीर नाशवान है पर इसके भीतर रहने वाला जीव, अविनाशी है, इसीलिए मुझे मृत्यु का कोई भी भय नहीं है, मैं ओर मेरे सभी शिष्य, फिर जन्म लेंगे और एक दिन तेरा विनाश करेंगे"! सामन मुनि ने कहा
"ठीक है,,,फिर अगले जन्म में मिलते हैं"!यह कह कर कामीनी ने अपने नुकीले नाखून से सामान मुनिवर का सीना चीर डाला और उसका हृदय निकाल कर खा गई, सामन मुनिवर का शरीर, उस सफेद वृक्ष के नीचे फेंक गई और 9 महीने बाद, कामिनी, रात्रि और वह सभी युवतियां गर्भवती हुई और उन्होंने अपने गर्भ से भेड़ियो को जन्म दिया, इस घटना को लगभग 5000 वर्ष बीत चुके हैं, वह सभी पिशाचिनीया, सह-शरीर आज भी जीवित है, उन्होंने इन 5000 वर्षों में हजारों, नवयुवकों का सीना चीरकर, उनका हृदय निकाल कर खाया है, आज भी जब वह किसी से समागम करती है तो 9 महीने बाद, एक भेड़िये को जन्म देती है, इसीलिए कामपुर नगर में हजारों भेड़िए भटक रहे हैं, और सबसे विशेष बात, वह सामन मुनि और कोई नहीं, तुम स्वयं हो और मानक राव ने आकाश बनकर जन्म लिया है, कामिनी उस जन्म में आकाश से अत्यधिक प्रेम करती थी, शायद इसी कारण उसने अभी तक आकाश को जीवित रखा है"! गुरुदेव ने कहा
इस कहानी से जुड़े, अपने सभी द्वंद और प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए, पढ़ते रहिए, कामीनी एक अजीब दास्तां
Gunjan Kamal
17-Nov-2023 05:52 PM
👏👌
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